21वीं सदी के लिए कौशल विकास: ग्रामीण कौशल विकास पर पुनर्विचार
सारांश
21वीं सदी में कौशल विकास को विकास का मदरबोर्ड माना जाता है। इस मदरबोर्ड को सही ढंग से समायोजित करना आवश्यक है ताकि नौकरियों की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में सुधार किया जा सके। ग्रामीण भारत में रोजगार क्षमता को बढ़ाने के लिए मौजूदा कौशल और मांग में मौजूद कौशल के बीच उचित भेदभाव करना ज़रूरी है। केवल कौशल पारिस्थितिकी तंत्र पर सही ढंग से पुनर्विचार ही ग्रामीण युवाओं के लिए अवसरों का एक डैशबोर्ड तैयार कर सकता है। वास्तव में, कौशल एक ऐसा क्षेत्र है जो आंतरिक रूप से और साधनात्मक रूप से महत्वपूर्ण है। यह मानव पूंजी और उत्पादकता में दक्षता को बढ़ाता है और विकास का प्रेरक बनता है। साथ ही, यह बेहतर रोजगार अवसरों के माध्यम से विकास प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है। कौशल विकास आंतरिक रूप से भी मूल्यवान है क्योंकि यह श्रम क्षमताओं और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सशक्तिकरण को बढ़ाता है, केवल नौकरी और आय से परे। हमारे देश के सामाजिक विकास को गति देने के लिए कौशल विकास सार्थक और उत्पादक जुड़ाव का पूर्व-आवश्यक तत्व है। युवा आबादी की बढ़ती संख्या, जिनकी आकांक्षा बेहतर जीवन गुणवत्ता प्राप्त करने की है, हमेशा से एक महत्वपूर्ण चिंता रही है। इसके विपरीत, भूमि जैसे साधन-संसाधन का आकार लगातार घट रहा है और इसका विकल्प है कि व्यक्ति के पास दूसरा सहारा हो। ऐसे में कौशल विकास सार्थक रोजगार संबंधी जुड़ाव के लिए एक विकल्प के रूप में पूर्व-आवश्यक बनकर सामने आता है। हालाँकि, कौशल जगत को एक रणनीतिक ढाँचे की आवश्यकता है जो संगठित रूप से प्रेरणा, नामांकन, प्रशिक्षण, मूल्यांकन और प्लेसमेंट की प्रक्रिया के अनुरूप हो। साथ ही, कौशल जगत में प्रवेश के लिए उत्सुकता और उत्साह भी ज़रूरी है। कौशल प्रशिक्षण को राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढाँचे (NSQF) के साथ संरेखित करके संचालित करने का प्रावधान है। कुल 37 सेक्टर स्किल काउंसिल्स (SSCs), राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के साथ स्थापित किए गए हैं ताकि भारत में कौशल विकास को दिशा और मार्गदर्शन मिल सके। दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसी योजनाएँ शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्मार्ट स्किलिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख हस्तक्षेप हैं। यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि कौशल विकास की रूपरेखा स्किल-गैप विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए तैयार की जानी चाहिए ताकि सेक्टोरल प्राथमिकताओं और मांग में मौजूद नौकरी भूमिकाओं को प्राथमिकता दी जा सके। देश वर्तमान में स्किल इंडिया मिशन (SIM) के माध्यम से परिवर्तन के कगार पर खड़ा है। भारतीय कुशल कार्यबल की मांग अन्य देशों में लगातार बढ़ रही है। इसलिए, यह आवश्यक है कि प्रणाली इस तरह से तैयार की जाए कि कौशल विकास न केवल परिवर्तनकारी हो बल्कि सामाजिक समावेशन को भी प्रोत्साहित करे।
कीवर्ड्स: कौशल विकास, डीडीयू-जीकेवाई, पीएमकेवीवाई, प्लेसमेंट, स्थानीय आर्थिक संभावनाएँ, सामाजिक समावेशन।
परिचय
कौशल विकास एक रणनीतिक कार्यस्थल पहल है, जिसका उद्देश्य प्रदर्शन में सुधार कर अधिक प्रतिफल प्राप्त करने हेतु दक्षताओं (कौशलों) की पहचान करना, उन्हें विकसित करना और बढ़ाना है। इसमें विभिन्न प्रशिक्षण हस्तक्षेपों के माध्यम से हार्ड और सॉफ्ट स्किल्स का प्रभावी विकास शामिल है। भले ही इसे पूर्वजों द्वारा विकसित किया गया हो, लेकिन पैमाना, कौशल और गति को मौजूदा कौशल सेट्स के साथ समन्वित करना आवश्यक है। इसके लिए कौशल प्रमाणित संस्थानों द्वारा उचित संवाद और प्रमाणन की आवश्यकता होती है। यह उनके औपचारिक रोजगार में अपेक्षाकृत सुरक्षित परिणामों के साथ मूल्य जोड़ सकता है।
कौशल विकास में आमतौर पर कौशल मूल्यांकन और अंतराल विश्लेषण शामिल होता है, जिसमें यह पहचाना जाता है कि कोई व्यक्ति अपने कौशल स्पेक्ट्रम में कहाँ खड़ा है। इसमें लक्ष्य निर्धारण और सुधार हेतु मापने योग्य उद्देश्यों का निर्माण भी शामिल है। यदि कहीं अंतराल मौजूद हैं, तो इन अंतरालों को पाठ्यक्रम में आवश्यक बदलावों को सम्मिलित करके भरना चाहिए, ताकि बेहतर परिणाम सुनिश्चित किए जा सकें। कौशल विकास की प्रक्रिया कौशल के प्रकार, उपलब्ध संसाधनों, सीखने की प्राथमिकताओं और बाज़ार की मांग पर निर्भर करती है।
आज के समय में कौशल विकास अपेक्षा बन चुका है क्योंकि इसमें तकनीकी चुनौतियाँ और नौकरी बाज़ार द्वारा किए जा रहे बदलावों की माँग शामिल है। कई पेशेवर जीवन भर सीखने, अपस्किलिंग, री-स्किलिंग और ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग (OJT) में शामिल रहते हैं। इसके सकारात्मक प्रभाव कार्यस्थल के वातावरण में दिखाई देते हैं, जैसे कि नौकरी से संतुष्टि, आत्मविश्वास में वृद्धि, करियर विकास के अवसर, बदलाव के अनुकूलन की क्षमता और नई चुनौतियों को संभालने की योग्यता।
ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए दो प्रमुख कौशल विकास योजनाएँ कार्यान्वित की गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास के लाभों को बड़े स्तर पर पहुँचाने के लिए डीडीयू-जीकेवाई योजना चलाई जाती है। वहीं, पीएमकेवीवाई ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए आजीविका का सुरक्षा कवच है। पीएमकेवीवाई योजना कौशल प्रमाणन प्रदान करती है, जिसमें स्किलिंग, अपस्किलिंग और री-स्किलिंग को चार मुख्य स्तंभों के माध्यम से शामिल किया गया है (i) केंद्र प्रायोजित और केंद्र प्रबंधित (CSCM), (ii) केंद्र प्रायोजित और राज्य प्रबंधित (CSSM), (iii) पूर्व सीख की पहचान (RPL), और (iv) विशेष परियोजनाएँ (SP)। यह योजना कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा संचालित है और केंद्र स्तर पर नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NSDC) तथा राज्य स्तर पर स्टेट स्किल डेवलपमेंट मिशन (SSDM) द्वारा लागू की जाती है। इसे प्रभावी रूप से जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए जिला स्तर पर भी विकेन्द्रीकृत किया गया है। दिलचस्प रूप से, डीडीयू-जीकेवाई योजना को विशेष रूप से ग्रामीण युवाओं (विशेषकर गरीब तबके) को कौशल प्रदान करने और उन्हें नियमित मासिक आय वाली आजीविका अवसर उपलब्ध कराने हेतु तैयार किया गया है, जो न्यूनतम मजदूरी से अधिक हो।
इस योजना को भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा क्लस्टर पहल भी कहा जाता है। यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) से भी जुड़ी है क्योंकि दोनों का साझा लक्ष्य गरीबी उन्मूलन है। यह योजना प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ दृष्टिकोण का भी हिस्सा है। वास्तव में, हमारे देश का कुशल जनबल विकसित भारत दृष्टि @2047 में योगदान देगा।
डीडीयू-जीकेवाई को कौशल विकास के साथ संरेखित करना
डीडीयू-जीकेवाई एक प्लेसमेंट-लिंक्ड और डिमांड-ड्रिवन कौशल विकास कार्यक्रम है, जिसे ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य 15 से 35 वर्ष के ग्रामीण गरीब युवाओं की सहायता करना है ताकि वे अपने परिवार के लिए आय में विविधता ला सकें और अपने करियर की आकांक्षाओं व क्षमताओं को साकार कर सकें। यह योजना बड़ी संख्या में ग्रामीण युवाओं के बेहतर जीवन स्तर की उम्मीदों और आकांक्षाओं को प्रोत्साहित करने के लिए तैयार की गई है। वास्तव में, 15-35 आयु वर्ग में लगभग 5.6 करोड़ युवा हैं, और चूँकि ग्रामीण भारत में कौशल प्रतिशत नगण्य है, इसलिए यह योजना विशेष कौशल प्रदान करके युवाओं को औपचारिक क्षेत्र में पूर्णकालिक रोजगार तक पहुँचाने का माध्यम बनती है।
डीडीयू-जीकेवाई उम्मीदवारों के कौशल प्रशिक्षण की 100% लागत वहन करती है। प्रशिक्षण इसके अनुमोदित प्रशिक्षण केंद्रों में परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों (PIAs/TPs) के माध्यम से दिया जाता है। इसमें कोई शुल्क, पंजीकरण चार्ज, परीक्षा या प्रमाणन शुल्क, और न ही प्लेसमेंट शुल्क लिया जाता है। हालांकि, उम्मीदवारों को सभी कक्षाओं और ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग (OJT) में शामिल होना होता है, मेहनत करनी होती है, कौशल सीखना होता है और अंतिम परीक्षा में न्यूनतम 70% अंक लाने होते हैं। हालाँकि यह योजना ग्रामीण युवाओं की माँग को ध्यान में रखकर बनाई गई थी, फिर भी किसी विशेष क्षेत्रीय वरीयता को प्राथमिकता नहीं दी गई है। हमारे देश के राज्यों की माँगें अलग-अलग हैं और उनकी आवश्यकताओं की समझ अभी तक औपचारिक रूप से सामने नहीं आई है। इन आवश्यकताओं को संदर्भानुसार पहचानना और उभरते कौशल की माँग को विस्तार देना ज़रूरी है। इसके लिए एक औपचारिक स्किल गैप सर्वेक्षण आवश्यक है। कभी-कभार किए गए सर्वेक्षण राज्यों की वास्तविक उभरती माँगों को उजागर नहीं करते। इसलिए राज्यों को जनगणना-आधारित स्किल गैप विश्लेषण करना चाहिए ताकि ठोस निष्कर्ष प्राप्त हो सकें। ये निष्कर्ष राज्यों में ग्रामीण कौशल प्रशिक्षण की दिशा, आकार और पैमाने को सही तरीके से सूचित करेंगे।
कौशल की माँग का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। जो आवश्यकता कल थी, वह आज प्रासंगिक नहीं भी हो सकती। एआई तकनीक की प्रगति के साथ, मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले कई कार्य अब रोबोट्स द्वारा किए जा रहे हैं। रोजगार परिदृश्य में तेजी से बदलाव हो रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, युवाओं की लगभग 69% नौकरियाँ और अवसर स्वचालित मशीनों द्वारा प्रतिस्थापित किए जा रहे हैं। मशीनें तेज़ और कुशलता से कार्य कर सकती हैं, विशेषकर दोहराए जाने वाले कार्यों में। इस प्रकार के कार्य बेहतर गुणवत्ता के साथ मशीनें ही कर सकती हैं। भविष्य में मानव के लिए अवसर केवल डिज़ाइन थिंकिंग और विशेषीकृत कौशल कार्य में होंगे। इसलिए ऐसे कौशल सेट और सोच विकसित करना आवश्यक है जिससे नए अवसरों का लाभ उठाया जा सके। आजीविका कमाना आम आदमी की सबसे बड़ी ज़रूरत है, और कौशल इस प्रक्रिया को सहारा देते हैं।
इसलिए डीडीयू-जीकेवाई के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वह यह समझे कि किन कौशल क्षेत्रों की माँग है और उसी अनुरूप अपने प्रशिक्षण ढाँचे को समायोजित करे। भारत सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में माँग पर आधारित एक नीति दस्तावेज़ जारी किया है, लेकिन बदलते परिदृश्यों के कारण इसमें असंगतियाँ बनी हुई हैं। अतः कौशल की आपूर्ति को माँग में हो रहे बदलाव के अनुसार लचीला बनाना आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों की माँग अत्यंत विविध है और कौशल विकास इस प्रकार से होना चाहिए कि ग्रामीण आवश्यकताओं को औपचारिक रूप से मान्यता मिले। वास्तव में, ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी भारत की तुलना में अधिक उपभोक्ता हैं। उनकी कम क्रयशक्ति ही उन्हें वस्तुओं और सेवाओं तक पहुँचने में बाधा बनती है। लेकिन, कुशल प्रशिक्षण परिवार की आय को कई गुना बढ़ा सकता है और वस्तुओं व सेवाओं की माँग को भी बढ़ा सकता है।
स्थानीय आर्थिक संभावनाओं के साथ पीएमकेवीवाई (PMKVY)
पीएमकेवीवाई की संभावनाओं को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप दिशा दी जानी चाहिए, तथा इन्हीं आवश्यकताओं को आधार बनाकर कौशल विकास कार्यक्रमों को पुनः डिज़ाइन और पुनर्गठित किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में, पीएमकेवीवाई कौशल प्रमाणन और प्रशिक्षण के क्षेत्र में देश की प्रमुख योजनाओं में से एक है। पीएमकेवीवाई प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से प्रशिक्षित कार्यबल से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अकुशल कार्यबल के जीवन में परिवर्तन लाएँगे उनकी आय में वृद्धि करेंगे और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेंगे। यह आर्थिक जड़ता को तोड़ेगा और दीर्घकाल में देश के विकासात्मक एजेंडा को बढ़ावा देगा।
1980 के दशक में शुरू हुए आर्थिक सुधारों ने वित्तीय संचालन की संरचना में व्यापक परिवर्तन किया। इसका केंद्र हमारी अर्थव्यवस्था के सेवा क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो गया। सेवा क्षेत्र की उत्पादकता का दायरा और अधिक विस्तृत करने के लिए बड़े पैमाने पर जनसमूह को संगठित करना आवश्यक है। इसके लिए कौशल विकास एक वरदान साबित होगा। इच्छुक लोगों को कौशल प्रदान करना, उनकी जीवन गुणवत्ता में वृद्धि करना न केवल निवेश पर प्रभावी प्रतिफल देगा बल्कि खुशी सूचकांक पर भी सकारात्मक परिणाम लाएगा। इसे उत्प्रेरित करने के लिए कौशल केवल नौकरी भूमिकाओं की जानकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नए अवसरों के द्वार भी खोलता है। इस प्रकार भारत में कौशल पारिस्थितिकी तंत्र उद्यमिता विकास, अप्रेंटिसशिप और कौशल प्रशिक्षण के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता है।
2015 से 2022 तक पीएमकेवीवाई योजना की तीन आवृत्तियाँ सहयोगात्मक दृष्टिकोण और विभिन्न प्राथमिकताओं के साथ लागू की गईं। कुल मिलाकर, विभिन्न क्षेत्रों में 1.37 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है। भारत, जिसकी सबसे बड़ी जनसांख्यिकीय पूँजी (demographic dividend) 2047 में चरम पर होगी और 2050 तक बनी रहेगी, नीति निर्माताओं के लिए यह आवश्यक बनाती है कि वे इस युवा क्षमता का अधिकतम उपयोग करने हेतु नीतियाँ बनाएँ। रोजगार बाजार लगातार बदल रहा है, जिससे कौशल की शेल्फ लाइफ कम हो रही है और जीवनभर सीखने की आवश्यकता बढ़ रही है। इसी कारण स्किलिंग, रिस्किलिंग और अपस्किलिंग विकासोन्मुखी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। युवाओं की आवश्यकताओं की पहचान करना और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध कराना निर्विवाद रूप से आवश्यक है। इसके लिए नीतियों को ज़मीनी वास्तविकताओं पर आधारित बनाना होगा।
पूर्व में बनाई गई नीतियाँ, जिनमें पाँच वर्षीय योजनाएँ भी शामिल हैं, हमारे देश में कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में अपेक्षित पैराडाइम शिफ्ट लाने में अधिक योगदान नहीं कर सकीं। इस संरचनात्मक बदलाव के लिए 2015 में स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत की गई, जिसमें देश में चल रही प्रमुख कौशल विकास योजनाओं को समाहित किया गया। पीएमकेवीवाई के अंतर्गत प्रशिक्षण लेने के बाद छात्रों की रोज़गार क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। खास बात यह है कि पीएमकेवीवाई न केवल आवश्यक कौशल क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करता है बल्कि जीवन निर्वाह हेतु ज़रूरी सॉफ्ट स्किल्स भी सिखाता है। यह देखा गया है कि युवा लोग विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नौकरी भूमिकाओं को अपनाते हैं। कुछ सामान्य नौकरी भूमिकाएँ, जो लगभग सभी राज्यों में प्रशिक्षुओं के बीच लोकप्रिय हैं, इनमें शामिल हैं: इलेक्ट्रीशियन, स्वरोज़गार दर्जी, डाटा एंट्री ऑपरेटर, रिटेल सेल्स एसोसिएट, सिलाई मशीन ऑपरेटर, कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव आदि।
प्रशिक्षण पूरा होने के बाद अधिकांश लाभार्थी स्वरोज़गार चुनते हैं। इसके पीछे कारण हैं: अपने गृह नगर से दूर जाने की अनिच्छा, नौकरी प्रस्तावों को तुरंत स्वीकार करने की अनिच्छा आदि। ज्यादातर प्रशिक्षु कौशल प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में अपने कौशल बढ़ाने और व्यक्तिगत विकास के लिए शामिल होते हैं। परिस्थितिजन्य कारक भी कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं को विवाह के बाद स्थानांतरण की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके जीवन और कौशल विकास की प्रक्रिया में रुकावट आती है। इसलिए, पीएमकेवीवाई का प्रशिक्षण और प्रमाणन एक ओर, और इसका वास्तविक क्रियान्वयन दूसरी ओर दोनों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढालना होगा ताकि यह योजना जमीनी स्तर तक पहुँचकर अधिकतम प्रभाव डाल सके।
Figure 1: Sector-wise placement rate under PMKVY
Figure 1: Sector-wise placement rate under DDU-GKY
पाई चार्ट (चित्र 1), जिसका शीर्षक है “डीडीयू-जीकेवाई के अंतर्गत क्षेत्रवार प्लेसमेंट दर”, उम्मीदवारों की नियुक्ति प्रतिशत के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में प्लेसमेंट परिणामों का तुलनात्मक अवलोकन प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि विभिन्न क्षेत्रों में काफी भिन्नता पाई जाती है। कौशल प्रशिक्षण को रोजगार में बदलने की क्षेत्रीय प्रभावशीलता के लिहाज से रबर (70%), हाइड्रोकार्बन (63%), और फर्नीचर एवं फिटिंग (62%) सेक्टर सबसे सफल रहे। इसका मुख्य कारण उद्योगों से बेहतर संबंध और रोजगार के लिए संरचित विकल्प होना माना जा सकता है।
इसके विपरीत, मीडिया एवं मनोरंजन, ग्रीन जॉब्स, और पर्यटन एवं आतिथ्य जैसे क्षेत्र, जिनकी प्लेसमेंट दर केवल 46% है, धीमी गति से समावेशन दर्शाते हैं। इसका कारण अनौपचारिकता, मौसमी प्रवृत्तियाँ या प्रशिक्षण उपरांत सीमित सहयोग हो सकता है। वहीं परिधान, खाद्य प्रसंस्करण, और वस्त्र एवं हथकरघा जैसे क्षेत्रों में 53-55% की मध्यम स्तर की प्लेसमेंट दर पाई गई। यह भी इंगित करता है कि इन क्षेत्रों में रणनीतिक रूप से सुधार की पर्याप्त संभावनाएँ मौजूद हैं।
कौशल ट्रैकिंग
दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के माध्यम से कौशल मानचित्रण का रणनीतिक कार्यान्वयन, कुशल कार्यबल के विकास में मांग और आपूर्ति के बीच असमानता को दूर करने का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। भारत सरकार ने उद्योगों द्वारा अनुमानित कुशल मानव संसाधन की मांग के अनुरूप पर्याप्त युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। ‘इसका पैमाना और क्रियान्वयन का आकार व्यापक नीतिगत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। वर्तमान में DDU-GKY के अंतर्गत 690 से अधिक परियोजनाएँ, 300 से अधिक भागीदारों द्वारा 82 उद्योग क्षेत्रों के 330 से अधिक ट्रेडों में चलाई जा रही हैं, जिनमें 2.7 लाख से अधिक अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण दिया गया है और 1.34 लाख से अधिक अभ्यर्थियों को नौकरियाँ मिली हैं।’ ‘इसी प्रकार, PMKVY, जो कि देश की प्रमुख कौशल विकास योजना है, के अंतर्गत 1.36 करोड़ से अधिक उम्मीदवारों का नामांकन और प्रशिक्षण, 1.08 करोड़ से अधिक को प्रमाणन, तथा 24 लाख से अधिक व्यक्तियों को नौकरियों में नियुक्त किया गया है।’³ यह बहुआयामी दृष्टिकोण क्षेत्रीय विविधीकरण और व्यापक भागीदार नेटवर्क से जुड़ा हुआ है, जो विविध आर्थिक क्षेत्रों में कौशलों का व्यवस्थित मानचित्रण करने तथा ग्रामीण एवं शहरी कार्यबल की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु तैयार की गई नीतिगत रूपरेखा को इंगित करता है। हालाँकि, विभिन्न राज्यों में किए गए ट्रेसर अध्ययन यह सुझाते हैं कि प्रशिक्षित व्यक्तियों की रोज़गारयोग्यता न तो लंबे समय तक टिकती है और न ही निरंतर सुधरती है। इसका मुख्य कारण यह बताया गया है कि एक निश्चित अवधि के बाद, मौजूदा नौकरी भूमिकाओं और अपेक्षित भूमिकाओं में असंगति उत्पन्न हो जाती है, और उनके कौशल की प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है।
मांग-आपूर्ति गतिशीलता और नीतिगत चुनौतियाँ
DDU-GKY और PMKVY के अंतर्गत कौशल मानचित्रण पहलों की प्रभावशीलता, मांग-आपूर्ति की खाई को पाटने में, उपलब्धियों के साथ-साथ लगातार बनी हुई चुनौतियों को भी उजागर करती है, जिन्हें परिष्कृत नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है। झारखंड के 24 ज़िलों जैसे राज्यों में किए गए व्यापक अध्ययनों ने सार्वजनिक, निजी और असंगठित क्षेत्रों में उद्योग की मांग और कार्यबल की आपूर्ति के बीच अंतर, श्रम बल भागीदारी, आकांक्षाओं और रोजगारयोग्यता में अंतरालों की पहचान की है। ‘मांग-आपूर्ति विश्लेषण से क्षेत्रीय असंतुलन सामने आते हैं। सरकार ने कुशल श्रमिकों की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटने हेतु विभिन्न क्षेत्र/समूह-विशिष्ट योजनाओं को लागू किया है, फिर भी नियुक्ति दरें नीतिगत पुनर्संरेखण की आवश्यकता का संकेत देती हैं। जहाँ DDU-GKY ने लगभग 49.6% की नियुक्ति सफलता हासिल की, वहीं PMKVY ने 17.6% की नियुक्ति दक्षता प्रदर्शित की।’ ये आँकड़े इस आवश्यकता पर बल देते हैं कि उद्योग-अकादमिक संबंधों को सुदृढ़ किया जाए और रीयल-टाइम श्रम बाज़ार खुफिया प्रणाली स्थापित की जाए। इसलिए, नीतिगत हस्तक्षेपों को निम्नलिखित पर केंद्रित करना चाहिए: कौशल अंतराल अध्ययनों को मजबूत करना, मांग पूर्वानुमान तंत्र को सुधारना और प्रशिक्षण प्रदाताओं एवं उद्योग हितधारकों के बीच ठोस फीडबैक लूप स्थापित करना। ताकि संसाधनों का अनुकूल आवंटन हो सके और रोज़गार परिणाम बेहतर बनाए जा सकें।
Table 1: State/UTs-wise candidates enrolled and placed under PMKVY during 2022
Data Source: https://www.data.gov.in/resource/stateut-wise-training-data-under-pradhan-mantri-kaushal-vikas-yojana-pmkvy-2018-19-2022-23
तालिका 1 प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के अंतर्गत राज्य और केंद्र शासित प्रदेशवार अभ्यर्थियों के नामांकन और नियुक्ति का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है। इसमें PMKVY 2.0 और PMKVY 3.0 दोनों शामिल हैं, जैसा कि जून 2022 की रिपोर्ट में दर्शाया गया है। यह प्रत्येक क्षेत्र के लिए तीन मुख्य आँकड़े उजागर करती है: कुल नामांकित अभ्यर्थी, कुल नियुक्त अभ्यर्थी, नियुक्ति दर-जिसे नामांकित अभ्यर्थियों के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया गया है। डेटा दर्शाता है कि विभिन्न राज्यों में कौशल विकास कार्यक्रमों की तीव्रता और सफलता में उल्लेखनीय भिन्नताएँ हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश (7,90,340 नामांकित), मध्य प्रदेश (4,49,101), और राजस्थान (3,86,823) में नामांकन की संख्या सबसे अधिक है, जो श्रम-बहुल क्षेत्रों में PMKVY की सफलता की एकाग्रता को दर्शाती है, इसके अनुरूप, इन राज्यों में नियुक्ति के आँकड़े भी अधिक हैं, जो कार्यक्रम के प्रभावी क्रियान्वयन का संकेत देते हैं। वहीं दूसरी ओर, लक्षद्वीप और लद्दाख जैसे छोटे केंद्र शासित प्रदेशों में जनसांख्यिकीय कारणों से नामांकन और नियुक्ति दरें बहुत कम रही हैं। कई राज्यों ने 85% से अधिक की नियुक्ति दक्षता दिखाई है। उदाहरणस्वरूप: असम (94.03%), अरुणाचल प्रदेश (91.62%), और बिहार (91.94%) ने प्रशिक्षण को रोजगार में बदलने की मजबूत क्षमता का प्रदर्शन किया है। यह आँकड़ा PMKVY के अंतर्गत कौशल विकास की क्षेत्रीय विविधताओं और परिणामों पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। नीतिनिर्माताओं के लिए आधाररेखा के रूप में यह सफल क्रियान्वयन मॉडलों और कमजोर प्रदर्शन वाले क्षेत्रों की पहचान करने में सहायक है। इससे भारत की कार्यबल को कौशलयुक्त बनाने हेतु अधिक लक्षित और परिणाम-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।
Table 2: State-wise details of candidates trained and placed under DDU-GKY during 2022
Data Source: https://www.data.gov.in/resource/state-wise-details-candidates-trained-and-placed-under-ddu-gky-2020-21-2023-24
तालिका 2 वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) के राज्यवार प्रशिक्षण और नियुक्ति परिणामों का विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इस तालिका में प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए -प्रशिक्षित अभ्यर्थियों की संख्या, नियुक्त अभ्यर्थियों की संख्या, और नियुक्ति दर (प्रतिशत) दर्शाई गई है। यह आँकड़े बताते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में DDU-GKY कितनी प्रभावी रूप से कार्य कर रही है और यह ग्रामीण कौशलों को रोजगार के अवसरों में बदलने में किस हद तक सफल रही है।
उत्तर प्रदेश (36,509 प्रशिक्षित और 20,271 नियुक्त) तथा आंध्र प्रदेश (18,651 प्रशिक्षित और 15,690 नियुक्त) ने सबसे अधिक भागीदारी दिखाई है और 80% से अधिक की नियुक्ति दर हासिल की है। पंजाब ने उल्लेखनीय दक्षता दर्शाते हुए 91% की नियुक्ति दर प्राप्त की, जो कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन और रोजगार बाज़ार से मजबूत जुड़ाव का संकेत है। इसके विपरीत, कुछ छोटे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश जैसे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (82%), मिज़ोरम (73%), और पुडुचेरी (93%) ने मिश्रित परिणाम दिखाए हैं – जहाँ नियुक्त अभ्यर्थियों की कुल संख्या बहुत कम है, लेकिन नियुक्ति दक्षता या तो बहुत अधिक या बहुत कम पाई गई। कई पूर्वोत्तर राज्यों में भिन्न प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं: मिज़ोरम और नागालैंड में नियुक्ति दर अपेक्षाकृत उच्च रही, जबकि अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर ने मध्यम से निम्न स्तर का रूपांतरण दिखाया। यह संकेत देता है कि इन क्षेत्रों में प्रशिक्षण की गुणवत्ता, उद्योग से जुड़ाव, या गतिशीलता सहयोग के लिए विशेष सुधारों की आवश्यकता है।
यह तालिका केवल DDU-GKY के 2022-23 के प्रदर्शन डैशबोर्ड के रूप में ही नहीं, बल्कि नीतिनिर्माताओं के लिए एक बेंचमार्किंग उपकरण के रूप में भी कार्य करती है। इससे उच्च प्रदर्शन करने वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है, प्रणालीगत कमियों का पता लगाया जा सकता है, और लक्षित उपाय विकसित किए जा सकते हैं, जिससे ग्रामीण कौशल कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार हो और उन्हें बाज़ार की आवश्यकताओं से जोड़ा जा सके। इस डेटा सेट से प्रशिक्षण और रोजगार परिणामों की तुलना संभव होती है और यह मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि ग्रामीण श्रम बाज़ार प्रशिक्षण के प्रति कितना संवेदनशील है तथा सार्वजनिक कौशल विकास पहलों का क्षेत्रीय आर्थिक परिस्थितियों से कितना मेल है। इस प्रकार, नीतिगत प्राथमिकता उद्योग, बाज़ार और अकादमिक जगत के बीच संतुलित सहभागिता सुनिश्चित करने पर केंद्रित होनी चाहिए।
डिमांड मैपिंग
हालाँकि डिमांड मैपिंग विभिन्न क्षेत्रों और सेक्टरों में रोज़गार अवसरों की पहचान के लिए एक बुनियादी कदम है, लेकिन एक संगठित कौशल अंतराल अध्ययन इससे कहीं गहरा मूल्य जोड़ता है। यह अध्ययन भविष्य के कामकाज, उभरती हुई नौकरी भूमिकाओं और क्षेत्र-विशिष्ट आवश्यकताओं की समझ प्रदान करता है। ऐसे अध्ययन विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे क्षेत्रीय विविधताओं और स्थान-काल आयामों को पकड़ते हैं यानी नौकरी की मांग किस प्रकार भौगोलिक क्षेत्रों, मौसमों और उद्योगों के अनुसार बदलती रहती है।
इसलिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए: जिन क्षेत्रों में घरेलू प्रवास अधिक है, वहाँ नौकरी की मांग मुख्यतः बुनियादी ढाँचे, लॉजिस्टिक्स या निर्माण कार्य से संचालित हो सकती है। जबकि उन शहरी समूहों में जहाँ निजी क्षेत्र विकसित है, वहाँ खुदरा, स्वास्थ्य सेवाएँ, या आईटी सेवाएँ अधिक हावी हो सकती हैं। DDU-GKY दिशानिर्देश प्रबंधित प्रवास की संभावना को एक नीतिगत उपकरण के रूप में स्वीकार करते हैं, लेकिन आंतरिक जटिलताओं, अनौपचारिकता, क्षेत्रीय असंतुलन, और कौशल व आकांक्षाओं के बीच असंगति अब तक पूरी तरह से मानचित्रित नहीं की जा सकी है।
पिछले एक दशक में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई व्यापक कौशल अंतराल आकलन किए गए हैं, ताकि भारत के श्रम बाज़ार की गतिशीलता को समझा जा सके। विशेष रूप से, NSDC राज्य कौशल अंतराल अध्ययन (2010–2018) ने सभी राज्यों और प्राथमिक क्षेत्रों के लिए ज़िला-स्तरीय श्रम मांग का मानचित्रण प्रदान किया। इसमें निर्माण, वस्त्र, खुदरा और स्वास्थ्य सेवा शामिल थे, जो कुल रिपोर्ट की गई कार्यबल मांग का 60–70% हिस्सा रखते हैं। लेकिन लॉजिस्टिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उभरते क्षेत्रों की उपस्थिति विभिन्न प्रशिक्षण हस्तक्षेपों में लगभग नहीं थी। इन अध्ययनों की एक बड़ी सीमा यह थी कि इनमें गतिशील मॉडलिंग या वास्तविक समय की आर्थिक कड़ियों का अभाव था (NSDC, 2017)। इसी तरह, ILO की रिपोर्ट Decent Jobs for Youth (2020) ने मार्केट-अनुरूप कौशल की महत्ता को रेखांकित किया और यह बताया कि कमज़ोर श्रम बाज़ार मध्यस्थता तंत्र तथा विश्वसनीय श्रम बाज़ार सूचना प्रणाली (LMIS) की कमी अक्सर कौशल और नौकरी के अवसरों के बीच असंगति पैदा करती है। इसी कड़ी में, पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) एक जनसंख्या-आधारित सर्वेक्षण के रूप में महत्वपूर्ण है, जिसने अधूरा रोज़गार, अनौपचारिकता और NEET दर जैसे सूचकांकों पर महत्वपूर्ण जानकारी दी है (MoSPI, 2023)।
हालाँकि DDU-GKY दिशानिर्देश परियोजना प्रस्ताव चरण में स्थानीय कौशल अंतराल अध्ययन करने की अनिवार्यता रखते हैं, लेकिन इन अध्ययनों की गुणवत्ता और विश्लेषणात्मक गहराई अक्सर अपर्याप्त पाई गई है। अधिकांश रिपोर्टें पुराने NSDC टेम्पलेट्स पर आधारित होती हैं और इनमें क्षेत्र-विशिष्ट प्राथमिक आँकड़े या स्थानीय नियोक्ताओं से परामर्श का अभाव रहता है विशेष रूप से MSME-प्रधान जिलों में। इसके परिणामस्वरूप, अध्ययन अक्सर सामान्य और गैर-कारगर निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं, जो डिजिटल मार्केटिंग विशेषज्ञ, मेडिकल कोडर या सोलर तकनीशियन जैसे समकालीन नौकरी भूमिकाओं की मांग को नहीं पकड़ पाते। इस अंतराल की मुख्य वजह राज्य और ज़िला स्तर पर एक क्रियाशील, सूक्ष्म श्रम बाज़ार सूचना प्रणाली का अभाव है। ऐसी प्रणाली नियोक्ता मांग, नौकरी रिक्तियों और मौसमी प्रवृत्तियों को वास्तविक समय पर ट्रैक करने में सक्षम हो सकती थी। nअतः, एक मज़बूत LMIS अत्यंत आवश्यक है, ताकि स्थिर आकलनों से आगे बढ़कर गतिशील और साक्ष्य-आधारित कौशल नियोजन की ओर संक्रमण किया जा सके।
प्लेसमेंट में नवाचार
कौशल विकास की सबसे जटिल और तात्कालिक चुनौतियों में से एक है युवाओं को सुनिश्चित रोजगार उपलब्ध कराना। सच्चाई यह है कि कौशल आधारित रोजगार कार्यक्रम केवल युवाओं को प्रशिक्षण ही नहीं देते, बल्कि उन्हें सार्थक, टिकाऊ और आकांक्षी आजीविकाओं से भी जोड़ते हैं। परंपरागत मॉडल, जैसे कि DDU-GKY और PMKVY, बड़े नियोक्ताओं से जोड़ने पर केंद्रित रहे हैं, जिनमें अधिकांशतः कम वेतन, नीरस कार्य और अधिक पलायन देखने को मिलता है। आवश्यकता है कि कौशल-आधारित नौकरियों को केवल संख्यात्मक रोजगार तक सीमित न रखकर गुणवत्ता, गरिमा, स्थायित्व और अर्थपूर्ण सहभागिता के रूप में रूपांतरित किया जाए।
रोजगार ग्रामीण युवाओं के लिए विशेषकर हाशिये पर खड़े तबकों से आने वालों के लिए सिर्फ आर्थिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत व सामाजिक विकास और पहचान का साधन है। आज का युवा केवल फैक्ट्री फ्लोर पर वेतन के लिए काम नहीं करना चाहता, बल्कि वह सृजन करना, योगदान देना और डिजिटल उद्यमी, स्वास्थ्य सहायक तथा सामुदायिक देखभाल कार्यकर्ता जैसे रूपों में मान्यता पाना चाहता है।
एक रचनात्मक उदाहरण छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले से आता है, जहाँ जिला कलेक्टर ने डिजिटल कौशल व मीडिया प्रोडक्शन में प्रशिक्षित ग्रामीण युवाओं के लिए एक यूट्यूब स्टूडियो स्थापित कराया। सीमित व औपचारिक नौकरियों का इंतजार करने के बजाय प्रशासन ने युवाओं को स्थानीय कहानियों, कृषि, जनजातीय संस्कृति और नागरिक जागरूकता पर आधारित कं
This report traces the journey of Panchayat computerisation in India popularly known as e‑Panchayat from the Round Table Conferences of 2004 through the design and rollout of the Panchayat Enterprise Suite (PES), to its consolidation into e‑Gram Swaraj (2020 onward).
The paper provides a detailed insight into the vast MFP (Minor Forest Produce) economy of India, a sector crucial to the livelihoods of about 100 million tribal and forest-dwelling people. This big paradox of the MFP economy - huge natural wealth and traditional ecological knowledge coming into existence side by side with continued economic marginalization of its bottom-most collectors -…
This chapter examines the integration of key schemes/programs/approaches such as Deendayal Antyodaya Yojana-National Rural Livelihoods Mission (DAY-NRLM), Pradhan Mantri Formalisation of Micro Food Processing Enterprises (PMFME), and Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme (MGNREGS).
This chapter outlines strategies to bridge the India–Bharat divide through inclusive, innovative financing of rural enterprises. It covers difficulties faced by first-generation entrepreneurs, advances in alternative credit scoring powered by fintech, and the role of community institutions like Cluster-Level Federations (CLFs).
A revolutionary strategy for creating inclusive and fact-based rural policy frameworks is Data for Development (D4D). Policymakers are now better able to plan, carry out, and oversee rural development projects by leveraging technology advancements and real-time data collection technologies.
Skilling is the motherboard of development in the 21st century. The motherboard needs to be calibrated well to improve quantity and quality in jobs. Navigating employability in rural India requires proper differentiation between existing skills and skills in demand.
This paper traces the typology of historical reforms at grass root level in the state and specific reforms initiated by the State Board of Revenue. These reforms gave due cognizance to a series of legal aid and empowerment initiatives of the government of India (‘Pro bono legal services, Tele law service and Nyaya Mitra Scheme) on judicial reforms.
Urban areas, as elsewhere, are emerging as nerve centres of economic growth in India. Urban India, contributing nearly two-thirds of the national income and hosting an overwhelming concentration of the non-farm sector within and around cities, has assumed a special role in our national vision of making India a developed nation by 2047.
In the era of sustainable development, the United Nations has established the Sutainable Development Goals (SDGs), one of which is the eradication of poverty by 2030. Poverty is a multifaceted issue that extends beyond mere economic deprivation, encompassing social exclusion and heightened vulnerability to various adversities, including disasters and diseases. According to World Bank, poverty is pronounced as deprivation in…